(अक्षर मतलब अविनाशी, यानी Constant and unchanging)
Date: Dec 13th, 2024
इस अध्याय में मुख्य रूप से भगवान ने जीवन, मृत्यु, आत्मा, और मोक्ष के रहस्यों को समझाया है। अर्जुन ने भगवान से आठ questions पूछे:
- ब्रह्म क्या है? अर्जुन ने पूछा कि ब्रह्म (परम सत्य) का वास्तविक स्वरूप क्या है? यह अनंत और अविनाशी तत्व क्या है?
- अध्यात्म क्या है? आत्मा का स्वभाव और उसकी Real प्रकृति क्या है? अध्यात्म का वास्तविक अर्थ क्या है?
- कर्म क्या है? अर्जुन ने कर्म का real meaning और उसका प्रभाव जानना चाहा।
- अधिभूत क्या है? Material World और नश्वर वस्तुओं का वास्तविक स्वरूप क्या है?
- अधिदैव क्या है? देवताओं और worldly शक्तियों का स्वभाव क्या है?
- अधियज्ञ कौन है? यज्ञों में उपस्थित वह देवता कौन है, जिसे अधियज्ञ कहा जाता है?
- मृत्यु के समय भगवान का स्मरण कैसे करें, ताकि मोक्ष प्राप्त हो सके?
- मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है, आत्मा की यात्रा और उसका अंतिम लक्ष्य क्या है?
इन प्रश्नों के medium से कृष्ण ने जीवन के deepest सत्य और भक्ति-योग का महत्व समझाया।
कृष्ण ने इन सवालों का जवाब दिया –
Answer 1: ब्रह्म वह permanent truth, जो Real, indestructible, timeless, and ever-present है।
यह वह शक्ति है, जो सभी प्राणियों के भीतर स्थित है और जिसे न समय प्रभावित कर सकता है, न ही कोई अन्य शक्ति।
यह संसार का मूल कारण है और सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय का आधार है।
(human mind से इसको सही में visualize करना कठिन है। इसको एक definition यानी परिभाषा की तरह समझें)
Answer 2: अध्यात्म का अर्थ है आत्मा का स्वभाव। आत्मा ब्रह्म का ही अंश है।
यह शरीर से अलग है और सदा अनंत रहता है।
आत्मा मनुष्य के भीतर स्थित वह चेतना है, जो शरीर और मन के परे है।
Answer 3: कर्म का अर्थ है वह क्रिया (intention to act, or an action) जिससे सृष्टि का संचालन होता है।
यह वह कार्य है, जो प्राणी को उसके past संस्कार और present इच्छाओं के आधार पर future के लिए प्रेरित करता है।
यज्ञ, दान, तप और सभी धर्म-निष्ठ कार्य भी कर्म का ही रूप हैं।
Answer 4: अधिभूत सभी नश्वर वस्तुएँ और material world है।
यह सृष्टि का वह भाग है, जो समय के साथ बदलता और नष्ट हो जाता है।
इसमें पंच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) और सभी seemingly जड़ वस्तुएँ शामिल हैं।
Answer 5: अधिदैव वह divine या ब्रह्मांडीय शक्ति है, जो physical universe और प्राणियों के संचालन में सहायक होती है।
इसे ‘हिरण्यगर्भ’ (universal consciousness) भी कहा जाता है, जो ब्रह्मांड का divine रूप है।
यह प्राणियों के जीवन चक्र और प्रकृति के नियमों को नियंत्रित करता है।
Answer 6: अधियज्ञ स्वयं भगवान हैं, जो सभी यज्ञों में उपस्थित रहते हैं।
वह प्रत्येक प्राणी के हृदय में स्थित होकर उनके सभी कर्मों और यज्ञों को प्रेरित करते हैं।
यज्ञ भगवान की पूजा और उनके प्रति समर्पण का प्रतीक है।
Btw – यज्ञ का अर्थ है एक पवित्र कर्म या ceremony, जिसमें श्रद्धा और समर्पण के साथ ईश्वर की आराधना की जाती है। यह केवल अग्नि में आहुति देने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें उन सभी कर्मों का combination है जो निस्वार्थ भाव से किए जाएँ और जिनका उद्देश्य लोक कल्याण और ईश्वर की प्रसन्नता हो।
Answer 7: मृत्यु के समय मन और बुद्धि को स्थिर रखकर भगवान के नाम और स्वरूप का स्मरण करना चाहिए।
“ॐ” मंत्र का मन ही मन उच्चारण करते हुए भगवान के निराकार रूप में ध्यान केंद्रित करें। (यह कैसे करें? Well, यह एक लम्बा topic है। अभी सिर्फ इतना समझ लीजिये की इसके लिए ही meditation और भक्ति की जाती है। )
जो व्यक्ति मृत्यु के समय भगवान को स्मरण करता है, वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त करता है।
Answer 8: मृत्यु के बाद आत्मा उसी लोक को प्राप्त करती है, जो उसके मृत्यु के समय के स्मरण और कर्मों के अनुसार होता है।
जो निराकार भगवान् का ध्यान करता है, वह परमधाम (भगवान का Real धाम, जिसे वैकुण्ठ और सत्य लोक कहते हैं) जाता है।
जो भौतिक वस्तुओं या इच्छाओं में लिप्त रहता है, वह पुनर्जन्म के चक्र में लौटता है। इनमें से जो पुण्य करते हैं, वह कुछ समय के लिए स्वर्ग में Stop लेते हैं। जो गुरु का ध्यान करते है, वह अपने गुरु के पास जाते हैं (जहां भी गुरु की आत्मा गयी हो)। जो देवताओं को याद करते हैं, वह उस देवता के पास (यानी स्वर्ग, जो की temporary stop ही है ) जाते हैं।
Eventually , कई जन्मों की continuous evolution के बाद धीरे धीरे बाकी सब से हठ के, किसी ना किसी तरह से (भगवान् की ही कृपा से) आखिर मन भगवान् में लग ही जाता है।
आत्मा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है, जो भगवान की भक्ति और ध्यान से प्राप्त होता है।
यह 8th Question का answer देते हुए जो “Eventually” (यानी बहुत समय बाद) शब्द उसे हुआ है, उसका भी मतलब कृष्ण बताते हैं –
चारों युग मिलाकर एक महायुग बनता है, जिसकी कुल अवधि 43,20,000 वर्ष है।
71 महायुग = 1 मन्वंतर (Manvantara) = 30,67,20,000 वर्ष (30.67 करोड़ वर्ष)
14 मन्वंतर + अंतराल = 1 कल्प (Kalpa) = 4.32 अरब वर्ष = ब्रह्म का एक दिन। इतनी ही लम्बी ब्रह्मा की रात होती है।
यानी ब्रह्मा का एक पूरा दिन (और रात) = 8.64 अरब वर्ष।
ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ पर सभी जीव unmanifest अवस्था से visible होते हैं और रात्रि होने पर पुनः सभी जीव unmanifest अवस्था में लीन हो जाते हैं।
ब्रह्मा के दिन के आगमन के साथ असंख्य जीव पुनः जन्म लेते हैं और ब्रह्माण्डीय रात्रि के आने पर अगले ब्रह्माण्डीय दिवस के आगमन पर
अपने आप फिर से प्रकट होने के लिए गायब हो जाते हैं।
व्यक्त और अव्यक्त सृष्टि से परे अन्य अव्यक्त Real डाइमेंशन्स भी है। उनको समझना human mind से परे है।
जब सब कुछ विनष्ट हो जाता है किन्तु उसकी Existence का विनाश नहीं होता।
Anyways, the point is – अगर भगवान् की भक्ति ना भी करो, या उलटी सीधी जैसे तैसे करो, तो भी ब्रह्मा के एक दिन बाद आप को मोक्ष मिल ही जाएगा।
समझने की बात यह है – इतना इंतज़ार करना है? क्यों ना जल्दी यह सफर तय किया जाए।
इसको ऐसे समझें – आपके सामने २ मार्ग हैं। इनमें से एक मार्ग मुक्ति की ओर ले जाने वाला है और दूसरा almost-infinite पुनर्जन्म की ओर ले जाता है। जो योगी इन दोनों मार्गों का रहस्य जानते हैं, वे कभी मोहित नहीं होते इसलिए वे सदैव योग में स्थित रहते हैं।
वे वेदों के अध्ययन, तपस्या, यज्ञों के अनुष्ठान और दान से प्राप्त होने वाले फलों से above and beyond और अधिक लाभ प्राप्त करते हैं। सिर्फ ऐसे योगियों को भगवान का परमधाम जल्दी प्राप्त होता है।
सातवें और आठवें Chapters में श्रीकृष्ण ने भक्ति को योग प्राप्त करने का सरल साधन और योग की उत्तम process बताया। 9th Chapter में उन्होंने अपनी परम महिमा का description किया है जिससे विस्मय (wonder), श्रद्धा और भक्ति उत्पन्न होती है। We will take a look at that tomorrow.
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