Chapter 16: देवासुर संपद विभाग योग

Date: Dec 21st, 2024

Important Definitions –
देवासुर = दैवीय + आसुरी प्रकृति के भेद।
यानी, Differences between Divine and Demoniac Natures

इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने 26 दैवी गुणों का वर्णन किया है, जो आत्मा को उन्नति की ओर ले जाते हैं।

दैवीय गुण: जो मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं –
अभयम् (निर्भयता)
: सत्य और धर्म का पालन करते हुए किसी भी परिस्थिति में भय से मुक्त रहना।
आत्मशुद्धि: मन, शरीर और आत्मा की पवित्रता।
ज्ञान में स्थिरता: आत्मा और परमात्मा के सत्य ज्ञान में दृढ़ रहना।
दान: जरूरतमंदों की निःस्वार्थ सहायता करना।
दमः (इंद्रिय संयम): अपनी इंद्रियों को नियंत्रित रखना।
यज्ञः भगवान की आराधना और समर्पण।
स्वाध्यायः (self-study): धार्मिक ग्रंथों और ज्ञान का अध्ययन।
तपः मन, वचन, और कर्म से आत्मसंयम का पालन।
आर्जवम् (सरलता): ईमानदारी और सत्यता।
अहिंसा: किसी भी प्राणी को कष्ट न देना।
सत्य: सत्य बोलना और उसका पालन करना।
अक्रोधः क्रोध से मुक्त रहना।
त्यागः भौतिक इच्छाओं और मोह का त्याग।
शान्तिः आंतरिक और बाहरी शांति।
परनिंदा (Gossip) से बचना: दूसरों की बुराई न करना।
दयाभूतेषु (सभी प्राणियों के प्रति दया): सभी जीवों के प्रति दयालु रहना।
मृदुता: कोमलता और प्रेमपूर्ण व्यवहार।
लज्जा: अनुचित कार्यों से लज्जा अनुभव करना।
स्थिरता: मन और इंद्रियों में स्थिरता।
तेजः ईमानदारी और ऊर्जा से भरा व्यक्तित्व।
क्षमा: दूसरों की गलतियों को माफ करने की क्षमता।
धैर्य (patience): विपरीत परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखना।
शौचम् (पवित्रता): आचरण और विचारों की शुद्धता।
अद्रोहः (द्वेष का अभाव): किसी के प्रति द्वेष या बैर न रखना।
नातिमानिता (अहंकार का अभाव): अहंकार से मुक्त रहना और विनम्र होना।


आसुरी स्वभाव के गुण : जो पतन का कारण बनते हैं –
अहंकार
: खुद को सर्वश्रेष्ठ मानना।
दंभ : दिखावे की प्रवृत्ति।
क्रोध : अनावश्यक गुस्सा।
अज्ञान : धर्म और सत्य से विमुखता। ऐसे लोग अपनी सफलता को अपनी मेहनत का परिणाम मानते हैं।
असंतोष : लालच में फँसे रहते हैं। उनकी इच्छाएँ कभी खत्म नहीं होतीं।

आसुरी लोग धर्म और सत्य को नहीं मानते। केवल material comforts, और belongings के पीछे भागते हैं। यह ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व को ज़्यादा महत्त्व नहीं देते, स्वभाव से स्वार्थी होते हैं और समाज में अशांति फैलाते हैं। आखिर, अपने ही कर्मों से स्वयं का नाश करते हैं।

कृष्ण का कहना है – दैवी गुणों को ठीक से समझें, और उन्हें अपनाएं। आसुरी गुणों को भी जानें और समझें, और उनसे दूर रहें।

 

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