Chapter 9: राजविद्या-राजगुह्य योग।

Date: Dec 14th, 2024

इसमें श्रीकृष्ण ने राजविद्या (सर्वोच्च ज्ञान) और राजगुह्य (deepest secret mystery) का उपदेश दिया है।

इसे भगवद गीता का हृदय भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें भक्ति योग और भगवान के सर्वव्यापी स्वरूप का विस्तार से वर्णन किया गया है। ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे सरल और श्रेष्ठ मार्ग भक्ति है। उन्होंने अर्जुन को विश्वास दिलाया कि जो भी व्यक्ति सच्चे दिल से भगवान की भक्ति करता है, वह उन्हें प्राप्त करता है और मोक्ष प्राप्त करता है। यह अध्याय भक्ति के महत्व और भगवान के प्रति समर्पण की महिमा को दर्शाता है।

इस अध्याय का अर्थ, चार संक्षिप्त लाइन में –
1 – भगवान की सर्वव्यापकता (omni-presence ): भगवान हर जगह हैं और हर चीज़ में व्याप्त हैं।
2 – भक्ति का महत्व: भगवान के प्रति सच्ची भक्ति से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष प्राप्त होता है।
3 – सरलता: भगवान को पाने के लिए material objects की आवश्यकता नहीं, बल्कि सच्चा प्रेम और श्रद्धा ही पर्याप्त है।
4 – हर किसी के लिए समान अवसर: भक्ति का मार्ग सभी के लिए खुला है, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग, या स्थिति का हो।

Point #3 को समझाने के लिए, कृष्ण ने कहा – जो कोई मुझे प्रेम और भक्ति के साथ एक पत्ता, फूल, फल, या जल अर्पित करता है, मैं उसे स्वीकार करता हूं और प्रसन्न होता हूं। यानी छोटी से छोटी चीज़, या सिर्फ भावना ही काफ़ी है किसी सच्चे के दिल को या भगवान को जीतने के लिए।

कृष्ण के यह शब्द दिवाली और Christmas के टाइम पर specially relevant हैं। हम बेकार में ही लोगों के लिए gifts ख़रीदते रहते हैं। जो material gifts से खुश हों, उनको खुश रखना impossible है।

कृष्ण के कुछ और शब्द जो Chapter 9 से हैं और मेरे प्रिय हैं –

मैं सभी प्राणियों के प्रति समान हूं। न कोई मेरा शत्रु है और न कोई मेरा प्रिय है। लेकिन जो लोग भक्ति के साथ मेरी आराधना करते हैं, वे मुझमें होते हैं और मैं उनमें।

यानी भगवान पक्षपाती नहीं हैं। चाहे तुम पंडित हो, या merchant, या कसाई।

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