Chapter 7: ज्ञान-विज्ञान योग

(The Yoga of Knowledge and Wisdom )

Date: Dec 12th, 2024

कृष्ण कहते हैं – अब मैं तुम्हारे समक्ष इस ज्ञान और विज्ञान को पूरी तरह से प्रकट करूँगा जिसको जान लेने पर इस संसार में तुम्हारे जानने के लिए और कुछ शेष नहीं रहेगा।

हजारों में से कोई एक मनुष्य कर्म, भक्ति, और ज्ञान के रास्ते से सिद्धि (special super powers) के लिए प्रयत्न करता है, और ऐसे सिद्धि प्राप्त करने वालों में से कोई एक विरला rare person ही वास्तव में मुझे जान पाता है।

भगवान् से श्रेष्ठ कोई नहीं है। सब कुछ भगवान् पर उसी प्रकार से आश्रित है, जिस प्रकार से धागे में गुंथे मोती।
भगवान् ही जल का स्वाद है, सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश है, वैदिक मंत्रों में पवित्र अक्षर ओम है , भगवान् ही अंतरिक्ष की ध्वनि और मनुष्यों में सामर्थ्य है। भगवान् ही पृथ्वी की शुद्ध सुगंध और अग्नि में दमक है, सभी प्राणियों में जीवन शक्ति है, और तपस्वियों का तप है।

कहने का मल्लब है – इस संसार में जो कुछ दिखता है, सुन ने में आता हैं, चखने में आता है, किसी भी तरह से महसूस होता है, और जो कुछ उस सब के पार भी है – सब भगवान् ही है। anything you can imagine, and everything else beyond the imagination – is God

कृष्ण आपको God की definition समझा रहे हैं

 

चार प्रकार के लोग भगवान् की शरण ग्रहण नहीं करते –
1 – वे जो ज्ञान से वंचित हैं,
2 – वे जो अपनी घटिया nature के कारण मुझे जानने में समर्थ होकर भी आलसी होकर मुझे जानने का प्रयास नहीं करते,
3 – जिनकी बुद्धि भ्रमित (confused) है और
4 – जो आसुरी (depressed / demonic / destructive) प्रवृति के हैं।

 

ऐसे ही, चार प्रकार के पवित्र लोग भगवान् की भक्ति में लीन रहते हैं:
1 – परेशान, अर्थात पीड़ित,
2 – ज्ञान की जिज्ञासा रखने वाले जिज्ञासु,
3 – संसार को जीतने की अभिलाषा रखने वाले लालची, और
4 – जो परमज्ञान में स्थित ज्ञानी हैं।

कृष्ण कहते हैं – इन चारों में से मैं #4 को मैं श्रेष्ठ मानता हूँ, जो ज्ञान युक्त होकर मेरी आराधना करते हैं और दृढ़तापूर्वक अनन्य भाव से मेरे प्रति समर्पित होते हैं। मैं उन्हें बहुत प्रिय हूँ और वे मुझे अत्यंत प्रिय हैं।

वास्तव में वे सब (all 4 categories) जो मुझ पर समर्पित हैं, निःसंदेह महान हैं। लेकिन जो ज्ञानी हैं (#4) और स्थिर मन वाले हैं और जिन्होंने अपनी बुद्धि मुझमें एक कर दी है और जो केवल मुझे ही परम लक्ष्य के रूप में देखते हैं, उन्हें मैं अपने समान ही मानता हूँ।

Now comes the topic about Gurus, and Devtaas.

कृष्ण कहते हैं –

वे मनुष्य जिनकी बुद्धि physical and materialistic wants / needs / कामनाओं द्वारा unclear है, वे देवताओं (अपने favorite देवता का नाम आप जानते होंगे) की शरण में जाते हैं। अपनी-अपनी प्रवृत्ति के अनुसार वे देवताओं की पूजा करते हैं और इन देवताओं को संतुष्ट करने के लिए वे धार्मिक कर्मकाण्डों में devoted रहते हैं।

भक्त श्रद्धा के साथ स्वर्ग के देवता के जिस रूप की पूजा करना चाहता है, मैं (यानी की यह भी भगवान् हे करते हैं ) ऐसे भक्त की श्रद्धा को उसी रूप में स्थिर करता हूँ।

श्रद्धायुक्त होकर ऐसे भक्त किसी विशेष देवता की पूजा करते हैं, और अपनी मन मानी वस्तुएँ प्राप्त करते हैं। किन्तु वास्तव में ये सब लाभ भगवान् द्वारा ही प्रदान किए जाते हैं।

(आप लोग समझ रहे हैं? देवता और भगवान् का difference? भगवान् निराकार है। अपनी ease और convenience के लिए हमनें देवताओं को याद करते है। )

किन्तु ऐसे अल्पज्ञानी (मंद बुध्दि) लोगों को प्राप्त होने वाले फल भी नश्वर होते हैं। (They do not last for too long ) जो लोग देवताओं की पूजा करते हैं, वे देव लोकों (temporary dimensions that may appear after death) को जाते हैं जबकि भगवान् के सच्चे भक्त मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

बुद्धिहीन मनुष्य सोचते हैं कि परमेश्वर पहले निराकार था और अब इन मूर्तियों, pictures आदि में यह साकार व्यक्तित्त्व धारण किया है। वे मेरे इस अविनाशी (timeless) और सर्वोत्तम दिव्य (divine) स्वरूप की प्रकृत्ति को नहीं जान पाते।

in summary – हमारी इंद्रियों की सीमाएँ हैं। हम केवल कुछ मील की दूरी तक देख सकते हैं, और यहाँ तक कि शक्तिशाली दूरबीनों से भी केवल कुछ million miles तक ही देख पाते हैं। सबसे अच्छे उपकरणों के साथ भी, हम केवल three dimensions को ही देख सकते हैं। लेकिन भगवान has unlimited dimensions, is everywhere, and has been timeless (अतीत, वर्तमान और भविष्य में सदा एक समान)।

Question – अगर भगवान् ही सब जगह हैं, तो क्यों हमें नहीं दीखते या महसूस होते?
यहां पर कृष्ण “माया” शब्द का use करते है। It is simply another word to describe our ignorance

अगले Chapter में कृष्ण उन आत्माओं के संबंध में बताएँगे जो देह त्यागते समय उनका स्मरण करती हैं और उनका लोक प्राप्त करती हैं। किन्तु मृत्यु के समय भगवान का स्मरण अत्यंत कठिन होता है। मृत्यु के समय मन और बुद्धि कार्य करना बंद कर देते हैं और व्यक्ति चेतना शून्य हो जाता है तब ऐसी स्थिति में कोई भगवान का स्मरण कैसे कर सकता है?

यह केवल उनके लिए संभव है जो life-long practice करे, और शरीर के सुख और दुख से परे हैं। ऐसे लोग बहुत सजगता से देह का त्याग करते हैं।

 

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *