Date: Dec 9th, 2024
…also known as दिव्य ज्ञान
कृष्ण कहते हैं – अब ध्यान से सुनो। यह दिव्य ज्ञान है। तुमने अनगणित जन्म लिए हैं, पर तुम्हें अपने पिछले जन्म याद नहीं। मुझे सब याद हैं।
In a way, कृष्ण is describing – गुरु परम्परा पद्धति continuing for अनन्त युग। वे कहते हैं की मैंने यही दिव्य ज्ञान कई जन्मों में, कई बार दिया है। कृष्ण ज़िक्र करते हैं उस वक़्त का, जब उन्होंने यही ज्ञान सूर्यदेव, विवस्वान, मनु, इक्ष्वाकु etc को दिया था।
अब आज आपकी बारी है, इस लंबी लाइन में millions of years तक इंतज़ार करने के बाद। सावधान हो कर, सुनें और समझें। Please do not miss the chance to fully comprehend. अगली बारी कब आएगी, पता नहीं।
गीता के २ सबसे प्रचलित श्लोक इसी chapter में हैं –
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
और
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
यानी की –
जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब मैं स्वयं की सृष्टि करता हूँ।
सज्जनों की रक्षा, दुष्टों के नाश, और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूँ।
इसके बाद, Chapter 4 में कृष्ण Balanced Living का महत्व बताते हैं।
yaani – कर्म और ज्ञान के सही संतुलन को समझने का संदेश।
kahte hain – श्रद्धा , गुरु का मार्गदर्शन , और ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास व्यक्ति को परम शांति की ओर ले जाता है।
जो मेरे (कृष्ण के) जन्म एवं कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानते हैं वे शरीर छोड़ने पर संसार में पुनः जन्म नहीं लेते। इंस्टेड, कृष्ण धाम (यान सत्य लोक, या वैकुण्ठ, या नित्य धाम) को प्राप्त करते हैं। आसक्ति (यानी मोह), भय और क्रोध से मुक्त होकर पूर्ण रूप से कृष्ण में मन लगा कर, कृष्ण की शरण ग्रहण कर, पिछले हज़ारों सालों में अनेक लोग इस ज्ञान से पवित्र हो चुके हैं। इस प्रकार से उन्होंने कृष्ण का दिव्य प्रेम प्राप्त किया है।
जिस भाव से लोग भगवान् की शरण ग्रहण करते हैं, उसी भाव के अनुरूप भगवान्उ उन्हें फल देता है । सभी लोग जाने या अनजाने में भगवान् को ही follow करते हैं।
इस संसार में जो लोग सकाम कर्मों में सफलता चाहते हैं (यानी की job में तरक्की, सुख, शान्ति, सेहत, लष्मी, आराम, बच्चों का सुख, आदि) वे लोग स्वर्ग के देवताओं की पूजा करते हैं क्योंकि सकाम कर्मों का फल शीघ्र प्राप्त होता है। जो भी सच्चे दिल से मांगो, मिल जाएगा, पर यह मत समझ लेना की वह मोक्ष का मार्ग है।
कृष्ण कहते हैं – न तो कर्म मुझे दूषित करते हैं और न ही मैं कर्म के फल की कामना करता हूँ जो मेरे इस स्वरूप को जानता है वह कभी कर्मफलों के बंधन में नहीं पड़ता। इस सत्य को जानकर (यानी की भगवान् से दुनियावी चीज़ें मांगने की बजाय, खुद को भगवान् जैसा बनाने की इच्छा) काल में मुक्ति की अभिलाषा करने वाली आत्माओं ने भी कर्म किए इसलिए तुम्हे भी उन मनुष्यों के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
कर्म, अकर्म और विकर्म क्या है?
इसका निर्धारण करने में बद्धिमान लोग भी confuse हो जाते हैं।
तुम्हें सभी तीन कर्मों – यानी कर्म, विकर्म और अकर्म की प्रकृति को समझना चाहिए।
1 – कर्म: कार्य करने का इंटेंशन, और कार्य करने का action
2 – अकर्म: अकर्म का अर्थ आलस्य या निष्क्रियता नहीं है। यह एक ऐसी अवस्था है जहां व्यक्ति कर्म करते हुए भी कर्म के फल और उसके बंधनों से मुक्त रहता है। कृष्ण सिखाते हैं कि “कर्म से बचना गलत है, लेकिन कर्म को त्यागते हुए उसका बंधन छोड़ देना ही सच्चा अकर्म है।”
वे मनुष्य जो अकर्म में कर्म और कर्म में अकर्म को देखते हैं। वे सभी मनुष्यों में बुद्धिमान होते हैं। सभी प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त रहकर भी वे योगी कहलाते हैं और अपने सभी कर्मों में पारंगत होते हैं। जिन मनुष्यों के समस्त कर्म सांसारिक सुखों की कामना से रहित हैं तथा जिन्होंने अपने कर्म फलों को दिव्य ज्ञान की अग्नि में भस्म कर दिया है उन्हें आत्मज्ञानी संत बुद्धिमान कहते हैं।
अपने कर्मों के फलों की आसक्ति को त्याग कर ऐसे ज्ञानीजन सदा संतुष्ट रहते हैं और बाहरी आश्रयों पर निर्भर नहीं होते। कर्मों में संलग्न रहने पर भी वे वास्तव में कोई कर्म नहीं करते। ऐसे ज्ञानीजन फल की आकांक्षाओं और स्वामित्व की भावना से मुक्त होकर अपने मन और बुद्धि को संयमित रखते हैं और शरीर से कर्म करते हुए भी कोई पाप अर्जित नहीं करते।
वे सांसारिक मोह से मुक्त हो जाते हैं और उनकी बुद्धि दिव्य ज्ञान में स्थित हो जाती है क्योंकि वे अपने सभी कर्म यज्ञ के रूप में भगवान के लिए सम्पन्न करते हैं और इसलिए वे कार्मिक reactions/ repercussions से मुक्त रहते हैं।
यह सब रास्ते परम सत्य की ओर बढ़ने के सही रास्ते हैं ।
जो लोग ऐसे कोई efforts नहीं करते, वे न तो इस संसार में और न ही अगले जन्म में सुखी रह सकते हैं।
आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर सत्य को जानो। विनम्र होकर उनसे ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा प्रकट करते हुए ज्ञान प्राप्त करो और उनकी सेवा करो। जिन्हें समस्त पापों का महापापी समझा जाता है, वे भी दिव्यज्ञान की नौका में बैठकर संसार रूपी सागर को पार करने में समर्थ हो सकते हैं।
जिन अज्ञानी लोगों में न तो श्रद्धा और न ही ज्ञान है और जो हमेशा sceptic yaani संदेहास्पद प्रकृति के होते हैं उनका पतन होता है।
3 – विकर्म:
विकर्म का अर्थ है गलत कर्म या अधर्मपूर्ण कर्म। यह ऐसे कर्मों को दर्शाता है जो धर्म, नैतिकता, और ईश्वरीय मार्ग के विरुद्ध होते हैं। भगवद गीता में विकर्म का उल्लेख उन कार्यों के रूप में किया गया है जो समाज और आत्मा दोनों के लिए हानिकारक हैं और व्यक्ति को पाप व बंधनों में डालते हैं।
जो वास्तव में अराधना करते हैं वे परम सत्य ब्रह्मरूपी (यानी universal consciousness) अग्नि में आत्माहुति (self sacrifice) देते हैं। यही मोक्ष है।
अब कृष्ण अलग अलग तरह के योग (परमात्मा को पाने, जिसे मोक्ष कहते हैं) के रास्ते बताते हैं –
- कुछ योगीजन श्रवणादि (मन्त्र और कीर्तन सुन ने की) क्रियाओं से संयम पाते हैं ।
- कुछ अन्य शब्दादि (मन्त्र जाप) जैसी क्रियाओं से संयम पाते हैं।
- कुछ लोग यज्ञ के रूप में अपनी सम्पत्ति को अर्पित करते हैं।
- कुछ अन्य लोग यज्ञ के रूप में कठोर तपस्या करते हैं और कुछ योग यज्ञ के रूप में अष्टांग योग का अभ्यास करते हैं और,
- जबकि अन्य लोग यज्ञ के रूप में वैदिक ग्रंथों का अध्ययन और ज्ञान पोषित करते हैं
- कुछ कठोर प्रतिज्ञाएँ करते हैं।
- कुछ अन्य लोग भी हैं जो प्राणायाम करते हैं।
- कुछ योगी जन अल्प भोजन (यानी fasting या व्रत) करते है।
यह सब रास्ते परम सत्य की ओर बढ़ने के सही रास्ते हैं ।
जो लोग ऐसे कोई efforts नहीं करते, वे न तो इस संसार में और न ही अगले जन्म में सुखी रह सकते हैं।
आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर सत्य को जानो। विनम्र होकर उनसे ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा प्रकट करते हुए ज्ञान प्राप्त करो और उनकी सेवा करो। जिन्हें समस्त पापों का महापापी समझा जाता है, वे भी दिव्यज्ञान की नौका में बैठकर संसार रूपी सागर को पार करने में समर्थ हो सकते हैं। जिन अज्ञानी लोगों में न तो श्रद्धा और न ही ज्ञान है और जो हमेशा sceptic yaani संदेहास्पद प्रकृति के होते हैं उनका पतन होता है।
सवाल पूछने में कोई बुराई नहीं है। सच में curiosity है, तो बिलकुल सवाल पूछें। पर बिना सच्ची जिज्ञासा के, सिर्फ अपने को ऊपर/ या बड़ा दिखाना, या हर बात पे शक करना ठीक नहीं – संदेहास्पद जीवात्मा के लिए न तो इस लोक में और न ही परलोक में कोई सुख है।
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