Date: Dec 24th, 2024
भगवद्गीता का यह अंतिम (और बहुत लंबा) अध्याय है। यहां कृष्ण ने पूरी गीता की summary दी है, और इसमें कई विषयों को सम्मिलित किया है।
chapter की शुरुआत में अर्जुन ने पूछा – संन्यास और त्याग का अर्थ, और उनसे जुड़े कुछ प्रष्न।
आप शायद सोचते हों की दोनों शब्दों का एक ही अर्थ है, यानी “किसी वस्तु या रिश्ते या आदत को छोड़ देना” । तो गीता एक इस अध्याय में ठीक से समझिये की –
- संन्यासी वह है जो गृहस्थ जीवन में भाग नहीं लेता और समाज को त्याग कर साधना का अभ्यास करता है।
- त्यागी वह है जो कर्म में संलग्न रहता है लेकिन कर्म-फल का भोग करने की इच्छा का त्याग करता है।
(यही गीता का मुख्य अभिप्राय है)
कृष्ण यह भी कहते हैं कि – यज्ञ, दान, तपस्या और कर्त्तव्य पालन संबंधी कार्यों का कभी त्याग नहीं करना चाहिए क्योंकि ये आप को शुद्ध करते हैं। इनको केवल कर्त्तव्य पालन की सोच के साथ करना चाहिए, क्योंकि इन कार्यों को कर्म फल की चाह के बिना पूरा करना आवश्यक होता है।
कर्म के तीन संघटक (3 main components of Action) – कर्म (कार्य), कर्ता (Doer), और करण (Instrument/Means).
- कर्म (कार्य) – कर्म का उद्देश्य और प्रकृति महत्वपूर्ण होती है। यह निष्काम (फल की इच्छा के बिना) हो सकता है या सकाम (फल की इच्छा के साथ)।
- कर्ता (Doer) – कर्ता वह है जो कार्य को करता है। कर्ता के मन का भाव, दृष्टिकोण, और उद्देश्य कर्म की दिशा और गुण को तय करते हैं। कर्ता तीन प्रकार का हो सकता है:
- सात्विक कर्ता: निःस्वार्थ, शांत, और स्थिर।
- राजसिक कर्ता: फल की इच्छा से प्रेरित और अहंकारी।
- तामसिक कर्ता: आलस्य और अज्ञान से प्रेरित।
- करण (Instrument/Means) – कर्म को पूरा करने के लिए जिन साधनों या उपकरणों का उपयोग किया जाता है, वे करण हैं। करण में बाहरी उपकरण (जैसे शारीरिक साधन) और आंतरिक उपकरण (जैसे मन, बुद्धि) दोनों शामिल होते हैं। करण का सही उपयोग कर्म को सफल बनाता है।
कर्म फल में योगदान करने वाले पाँच कारक/ घटक (Contributors)
- अधिष्ठान (Base/Foundation) – कर्म की भूमि या आधार। यह वह स्थिति है जिसमें कार्य किया जाता है। उदाहरण: एक शिक्षक का शिक्षण स्थान (विद्यालय)।
- कर्ता (Doer) – कर्म को करने वाला व्यक्ति। कर्ता की योग्यता, दृष्टिकोण, और प्रेरणा कर्मफल को प्रभावित करती है।
- करण (Instruments) – कार्य को करने के लिए इस्तेमाल किए गए उपकरण। बाहरी और आंतरिक साधन, जैसे शारीरिक ऊर्जा, मानसिक एकाग्रता, और उपकरण।
- चेष्टा (Effort) – कर्म के लिए किया गया प्रयास। कर्मफल में कर्ता की मेहनत और उसकी दृढ़ता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
- दैव (Divine Will/Fate/ Luck) – ईश्वर की इच्छा या प्राकृतिक शक्ति। कर्म के परिणाम में भाग्य या परिस्थिति का प्रभाव भी होता है। यह कर्ता के नियंत्रण से बाहर की स्थिति को दर्शाता है।
कर्म के ये पाँच घटक (contributors) कर्मफल को प्रभावित करते हैं। यदि इनमें से किसी एक में कमी होती है, तो कर्मफल भी वैसा ही होगा। उदाहरण के लिए:
- यदि कर्तव्य (कर्त्ता) निष्काम भाव से कर्म करे, तो फल सकारात्मक और आत्मा को शुद्ध करने वाला होगा।
- यदि चेष्टा (प्रयास) में कमी हो, तो फल अधूरा रहेगा।
- दैव (भाग्य) की भूमिका परिस्थितियों को निर्धारित करती है, लेकिन यह कर्ता को जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करती। उदाहरण के लिए – यदि आपके Business में कोई नुक्सान हो, तो आप हाथ पे हाथ धर के ऊपर वाले को दोष ना दें। फिर से मेहनत करें, और situation पे विजय पाएं। ठीक उसी तरह जैसे ओले पड़ने से फसल खराब हो सकती है, पर किसान हार नहीं मानता और फिर से नयी फसल बोता है।
यह दृष्टिकोण हमें प्रेरित करता है कि:
- सही साधनों (करण) और अच्छे प्रयास (चेष्टा) से कर्म करें।
- कर्म के परिणाम को पूरी तरह से अपने हाथ में मानने के बजाय, परिस्थितियों और ईश्वर की इच्छा को स्वीकारें।
- अपने कर्मों को सात्विक भाव से करें, न कि राजसिक या तामसिक प्रवृत्ति से।
कृष्ण कहते हैं कि जो अल्पज्ञानी है वे स्वयं को अपने कार्यों का कारण मानते हैं लेकिन विशुद्ध बुद्धि युक्त mature आत्माएँ न तो स्वयं को अपने कार्यों का कर्ता और न ही भोक्ता मानती हैं। अपने कर्मों के फलों से सदैव dispassionate रहने के कारण वे कार्मिक प्रतिक्रियाओं के बंधन में नहीं पड़ते।
कृष्ण बताते हैं – लोगों के उद्देश्यों और कर्मों में भिन्नता क्यों पाई जाती है? फिर इसमें प्रकृति के तीन गुणों (सात्विक: निःस्वार्थ, शांत, और स्थिर। राजसिक: फल की इच्छा से प्रेरित और अहंकारी। तामसिक: आलस्य और अज्ञान से प्रेरित) के अनुसार – ज्ञान, कर्म और कर्ता की categories का वर्णन किया गया है। हर व्यक्ति अद्वितीय है, और उसके उद्देश्य उसके स्वभाव और क्षमताओं पर आधारित होते हैं। आत्मनिरीक्षण से हम अपने उद्देश्य और कर्मों को समझ सकते हैं। जब हम निष्काम कर्म और समर्पण के साथ काम करते हैं, तब ही हम जीवन के सच्चे अर्थ को समझ सकते हैं।
next, कृष्ण ने- बुद्धि, दृढ संकल्प और सुख के संबंध को describe किया है। कृष्ण उन लोगों का चित्रण करते हैं जिन्होंने आध्यात्मिक जीवन में पूर्णता की अवस्था प्राप्त कर ली है और ब्रह्म के personal-experience में लीन हो गए हैं। कृष्ण ने यह भी कहा कि ऐसे पूर्ण योगी भी भक्ति द्वारा ही अपनी पूर्णता का अनुभव करते हैं। इसलिए भगवान के दिव्य व्यक्तित्त्व के रहस्य को केवल मधुर भक्ति द्वारा जाना जा सकता है। कृष्ण अर्जुन को फिर से याद कराते हैं कि भगवान सभी जीवों के हृदय में स्थित हैं, और उनके कर्मों के अनुसार वे उनकी गति (यानी मृत्यु के बाद क्या होगा) को direct करते हैं। यदि हम उनका स्मरण करते हैं और अपने सभी कर्म उन्हें समर्पित करते हैं तथा उनका आश्रय लेकर उन्हें अपना लक्ष्य बनाते हैं, तब उनकी कृपा से हम सभी प्रकार की कठिनाईयों को पार कर लेंगे। लेकिन यदि हम अपने अभिमान से प्रेरित होकर अपनी इच्छानुसार कर्म करते है तब हम सफलता प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
अंत में श्रीकृष्ण यह प्रकट करते हैं कि सभी प्रकार की धार्मिकता का त्याग करना और केवल भगवान की भक्ति के साथ-साथ उनके शरणागत होना ही सबसे गहरा ज्ञान है। इसीलिए यह ज्ञान उन्हें नहीं प्रदान करना चाहिए जो सिर्फ show-off करते है, और असली भक्त नहीं हैं, क्योंकि ऐसे लोग इसकी अनुचित व्याख्या करेंगे और इसका दुरूपयोग कर irresponsibly अपने कर्मों का त्याग करेंगे। यदि हम यह गहरा ज्ञान किसी well-deserving लोगों को देते हैं, तब यह अति प्रेमायुक्त बन जाता है और भगवान को अति प्रसन्न करता है।
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आखिर में अर्जुन declare करता है कि उसका मोह/ confusion/ fear/ doubt नष्ट हो गया है और वह कृष्ण की आज्ञाओं का पालन करने के लिए तत्पर है।
अंत में संजय, जो अंधे राजा धृतराष्ट्र को युद्ध भूमि पर भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच हो रहे dialog सुना रहा था, व्यक्त करता है कि वह इन बातों को सुनकर इतना stunned और आश्चर्य चकित है कि जैसे ही वह भगवान के पवित्र शब्दों और भगवान के अति विशाल विश्व रूप का स्मरण करता है तब उसके शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
भगवद्गीता का समापन करते हुए संजय कहता है कि विजय सदैव वहीं होती है जहाँ भगवान और उसके भक्त होते हैं और इस प्रकार से अच्छाई, प्रभुता और समृद्धि भी वहीं होगी क्योंकि परम सत्य का प्रकाश सदैव असत्य के अंधकार को परास्त कर देता है।
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