Date: Dec 19th, 2024
इस Chapter को समझने के लिए, प्रस्तुत है एक छोटी सी कहानी –
“तीन मित्रों की कहानी: सत्व, रजस, और तमस”
एक बार की बात है, एक राजा ने अपने तीन मित्रों को दरबार में बुलाया। उनके नाम थे: सत्व, रजस, और तमस। राजा ने कहा, “मैं तुम तीनों को अपने जीवन में एक खास जिम्मेदारी देना चाहता हूँ। अगर मैं तुम्हे अपना उत्तराधिकारी बनाऊं, तो तुम मुझे बताओ कि तुम कैसे मेरे राज्य की सेवा करोगे।”
रजस ने आगे बढ़ कर बड़े उत्साह से कहा, “महाराज, मैं सक्रियता और कामनाओं का प्रतीक हूँ। मैं लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करूँगा।
वे धन, प्रसिद्धि, और भौतिक सुख की इच्छा से कार्य करेंगे। आपके देश का जीडीपी, GNP, हर नागरिक की productivity, industry, stock market, defense, और overall Economy बहुत बढ़ेगी। हर फॅमिली के पास multiple cars होंगीं, roads, railways, airports, सबसे उम्दा होंगे। हर राष्ट्र से लोग आपके राज्य में आ कर रहना चाहेंगे। पूरे विश्व में आपके राज्य की धाक होगी।
….लेकिन, मेरे साथ असंतोष और संघर्ष भी आएंगे, क्योंकि भोग-विलास और खुशियां भरपूर होने पर भी किसी की चाहतें कभी पूरी नहीं होंगी।”
राजा ने कहा, “वाह! तुम राज्य को उन्नति की ओर ले जा सकते हो, लेकिन तुम्हारे कारण अशांति भी बढ़ सकती है।”
राजा ने फिर तमस की ओर देखा, जो चुप चाप सब सुन रहा था । कुछ प्रोत्साहन देने पर, तमस ने आलस्य भरे स्वर में कहा,
“महाराज, मैं आपके राज्य में सबको आराम और आरामदायक जीवन का वादा करता हूँ। सच्चा मज़ा तो सोने और आराम करने में है। मेरे प्रभाव से लोग अपनी नींद अच्छी तरह से पूरी करेंगे, जो कुछ उनके पास है उसमें गहरा मोह रखेंगे। बेकार में सत्य, परमसत्य, और धर्म की खोज और बहस में कुछ नहीं रखा। कल किसने देखा है, बेकार में हर दिशा में नहीं भागेंगे। क्यूंकि दिन रात भागते रहने से तो अच्छा तो दिशाहीन होना है।
राजा ने चिंतित होकर कहा, “कुछ आराम तो अच्छा है। पर लगता है तुम अज्ञानता और जड़ता के प्रतीक हो। तुम्हारे प्रभाव से निराशा और अंधकार आ सकती है। तुम्हारी उपस्थिति राज्य के पतन का कारण बन सकती है।”
अब आयी सत्व की बारी। सत्व ने विनम्रता से कहा, “महाराज, मैं ज्ञान, शांति और सुख का प्रतीक हूँ। मेरा काम है लोगों के मन और शरीर को शुद्ध रखना। मैं उन्हें सच्चाई, सरलता, और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करूँगा। मेरा प्रभाव लोगों को ध्यान, योग, और सेवा में लीन करेगा, जिससे वे आत्मा का सच्चा स्वरूप पहचान सकें।
…लेकिन सच बताऊँ तो मेरे साथ रहना हर किसी के लिए आसान नहीं।”
राजा ने सत्व की बात सुनकर मुस्कराते हुए कहा, “यह मार्ग बहुत मुश्किल लगता है, इसीलिए हर नागरिक शायद तुम्हारा अनुसरण ठीक से नहीं कर सकेगा। पर तुम्हारी उपस्थिति राज्य को पवित्र और सुखी बना देगी।”
राजा ने तीनों मित्रों से कहा, “तुम तीनों मेरे राज्य के लिए जरूरी हो, लेकिन मुझे तुम्हारे बीच संतुलन बनाना होगा।
रजस, तुम राज्य को क्रियाशील और उन्नत बनाओगे।
तमस, तुम्हारी ऊर्जा कभी-कभी विश्राम के लिए उपयोगी हो सकती है, लेकिन तुम्हें सीमित रखना होगा।
सत्व, तुम राज्य का मार्गदर्शन करोगे।”
In summary – यदि हम इन तीनों के बीच संतुलन बना लें और सत्व को प्राथमिकता दें, तो हम जीवन में सच्ची सफलता और शांति प्राप्त कर सकते हैं।
इस अध्याय में Material यानी worldly शक्ति की प्रकृति का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि प्राकृतिक शक्ति सत्व, रजस, और तमस तीन गुणों से निर्मित है। शरीर, मन और बुद्धि उनमें भी यह तीनों गुण विद्यमान होते हैं। इन गुणों का मिश्रण (in uniquely different proportions) हमारे व्यक्तित्व के स्वरूप का निर्धारण करता है। सत्व गुण शांत स्वभाव, सद्गुण और शुद्धता को चित्रित करता है तथा रजो गुण अन्तहीन कामनाओं और सांसारिक आकर्षणों के लिए अतृप्त महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाता है एवं तमो गुण भ्रम, आलस्य, नशे और निद्रा का कारण है। जब तक आत्मा जागृत नहीं होती, तब तक हमें इन गुणों की प्रबल शक्तियों से निपटना सीखना चाहिए। मुक्ति इन तीन गुणों से परे है। भगवान इन तीनों गुणों से परे हैं। जगे हुए मनुष्य सदैव संतुलित रहते हैं, और वे संसार में तीन गुणों की activities को देखकर व्यक्तियों, पदार्थों तथा परिस्थितियों में प्रकट होने वाले उनके प्रभाव से tensions नहीं लेते। वे सभी पदार्थों को भगवान की शक्ति के expressions के रूप में देखते हैं, जो in the end उनके अपने नियंत्रण में होती है। इसलिए सांसारिक परिस्थितियाँ न तो उन्हें हर्षित और न ही उन्हें दुखी कर सकती हैं।
इस प्रकार कृष्ण हमें एक बार फिर से – भक्ति की महिमा और तीन गुणों से परे ले जाने की इसकी क्षमता का स्मरण कराते हुए इस अध्याय का समापन करते हैं।
कृष्ण इस अध्याय में यह भी कहते हैं – सत्वगुण सांसारिक सुखों में बांधता है, रजोगुण आत्मा को सकाम कर्मों की ओर प्रवृत्त करता है और तमोगुण ज्ञान को आच्छादित कर आत्मा को भ्रम में रखता है।
कभी-कभी सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण को परास्त करता है और कभी-कभी रजोगुण सत्व गुण और तमोगुण पर हावी हो जाता है और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि तमोगुण सत्व गुण और रजोगुण पर हावी हो जाता है।
जब शरीर के सभी द्वार ज्ञान से गायब हो जाते हैं तब इसे सत्वगुण की अभिव्यक्ति मानो।
जब रजोगुण प्रबल होता है तब लोभ, सांसारिक सुखों के लिए परिश्रम, बचैनी और उत्कंठा के लक्षण विकसित होते हैं।
जड़ता, असावधानी और भ्रम यह तमोगुण के प्रमुख लक्षण हैं।
जिनमें सत्वगुण की प्रधानता होती है वे मृत्यु के बाद ऋषियों के ऐसे उच्च लोक में जाते हैं, जो रजो और तमोगुण से मुक्त होता है।
रजोगुण की प्रबलता वाले सकाम कर्म करने वाले लोगों (The Rich and Famous) के बीच स्वर्ग के वासी बन ने के बाद पृथ्वी पर ही पुनःजन्म लेते हैं।
तमोगुणी निम्न नरक लोकों में जाते हैं, और फिर प्राश्चित के बाद पशुओं की प्रजातियों में पुनःजन्म लेते है।
सत्वगुण में सम्पन्न किए गये कार्य शुभ फल प्रदान करते हैं, रजोगुण के प्रभाव में किए गये कर्मों का परिणाम पीड़ादायक (Expectation lead to even higher expectations, and eventually to frustrations) होता है तथा तमोगुण से सम्पन्न किए गए कार्यों का परिणाम अंधकार है।
सत्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ और तमोगुण से अज्ञानता, प्रमाद (असावधानी, लापरवाही, या अज्ञानता के कारण कर्तव्य से चूकना) और भ्रम उत्पन्न होता है।
जब बुद्धिमान व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि सभी कार्यों में प्रकृति के तीनों गुणों के अलावा कोई कर्ता नहीं है और जो मुझे इन तीन गुणों से परे देखते हैं, वे मेरी दिव्य प्रकृति को प्राप्त करते हैं। शरीर से संबद्ध प्राकृतिक शक्ति के तीन गुणों से आगे/ परे होकर कोई जन्म, मृत्यु, रोग, बुढ़ापे और दुखों से मुक्त हो जाता है तथा अमरता प्राप्त कर लेता है।
अध्याय के आखिर में अर्जुन ने पूछा – हे भगवान! वे जो इन तीनों गुणों से परे हो जाते हैं उनके लक्षण क्या हैं? वे किस प्रकार से गुणों के बंधन को पार करते हैं?
कृष्ण ने जवाब में कहा – हे अर्जुन! वे गुणों की प्रकृति से impartial रहते हैं और उनसे confuse नहीं होते। वे यह जानकर कि केवल गुण ही क्रियाशील हैं, इसलिए वे बिना परेशानी आत्म स्थित रहते हैं। इन तीनों गुणों से परे, मनुष्य न तो प्रकाश (सत्वगुण से उदय), न ही कर्म (रजोगुण से उत्पन्न), और न ही मोह (तमोगुण से उत्पन्न) की बहुतायत availability होने पर इनसे घृणा करते हैं और न ही इनके अभाव में इनकी लालसा करते हैं।
वे जो सुख और दुख में समान रहते हैं, जो आत्मस्थित हैं, जो मिट्टी के ढेले, पत्थर और सोने के टुकड़े को एक समान दृष्टि से देखते हैं, जो प्रिय और अप्रिय घटनाओं के प्रति समता की भावना रखते हैं। वे बुद्धिमान हैं जो criticism और प्रशंसा को समभाव से स्वीकार करते हैं, जो मान-अपमान की स्थिति में समभाव रहते हैं। जो शत्रु और मित्र के साथ एक जैसा व्यवहार करते हैं, जो सभी material व्यापारों में फसने के बजाय उनसे ऊपर उठ जाते हैं – गुणातीत कहलाते हैं।
ऐसे लोग विशुद्ध भक्ति के साथ सेवा करते है। वे समझते हैं की निराकार ब्रह्म – अमर, अविनाशी, शाश्वत धर्म और असीम दिव्य आनन्द है।
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