Chapter 10: विभूति योग

Date: Dec 15th, 2024

(विभूति मतलब – भगवान के अनन्त वैभवों (Glories) की visualization/ comprehension/ पूजा/ स्तुति)

इस chapter में कृष्ण अपने आपको describe करते हैं। कृष्ण बताते हैं कि वे सृष्टि में प्रकट प्रत्येक अस्तित्व का स्रोत हैं। मनुष्यों में various प्रकार के गुण उन्हीं से उत्पन्न होते हैं। सात महर्षि, चार महान ऋषि और चौदह मनुओं (यह पृथ्वी पर predecessors of humans थे) का जन्म उनके मन से हुआ और बाद में संसार के सभी मनुष्य इनसे प्रकट हुए।

(Notes

सात महर्षि (Seven Great Sages) कौन हैं ? (please notice the use of present tense – these are celestial beings that are still present)

यह वे ऋषि हैं, जो ब्रह्मांड के निर्माण और ज्ञान के प्रसार में सहायक हैं। उन्हें सृष्टि के संचालक और मानव जाति के मार्गदर्शक माना जाता है।
इन सात महर्षियों के नाम हैं: अत्रि, भृगु, पुलह, पुलस्त्य, वशिष्ठ , क्रतु, मरिचि।

ये ऋषि ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और इनका कार्य सृष्टि की रचना में सहयोग करना और धर्म, ज्ञान, और आध्यात्म का प्रचार-प्रसार करना है।

चार महान ऋषि (Four Kumaras or Great Sages) कौन हैं?
यह सात ऋषिओं से भी पहले आये थे। यह चार महान ऋषि वे हैं, इन्हे चतु: सनकादी ऋषि भी कहा जाता है। ये ब्रह्मा के पहले मानस पुत्र हैं और ज्ञानी, तपस्वी, तथा ब्रह्मचर्य के प्रतीक हैं। इनके नाम हैं: सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार।

ये चारों महान ऋषि सृष्टि के प्रारंभ में ज्ञान और वैराग्य का प्रसार करने के लिए जन्मे। उन्होंने सांसारिक बंधनों को त्यागकर मोक्ष और तपस्या का मार्ग दिखाया।

चौदह मनु (Fourteen Manus) – मनु सृष्टि के समय के मापदंड (युगों) के अधिपति (supervisor) और मानव जाति के पूर्वज हैं। हर मन्वंतर (Manvantara) में एक मनु होता है, और वर्तमान ब्रह्मा के दिन में 14 मन्वंतर होते हैं। पिछले chapter के description में मैने आपको बताया था ब्रह्मा के 1 दिन कि duration के बारे में।

चौदह मनुओं के नाम हैं: स्वायंभुव मनु, स्वारोचिष मनु, औत्तम मनु, तमस मनु, रैवत मनु, चाक्षुष मनु, वैवस्वत मनु (वर्तमान मनु) , सावर्णि मनु, दक्षसावर्णि मनु, ब्रह्मसावर्णि मनु, धर्मसावर्णि मनु, रुद्रसावर्णि मनु, देवसावर्णि मनु, इन्द्रसावर्णि मनु।

मनु वे हैं जो मानव जाति (मनुष्य) के जनक (creator) माने जाते हैं और धर्म, शासन, तथा संस्कृति की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में हम वैवस्वत मनु के काल में हैं।)

जीवों में various गुण जैसे-बुद्धि, ज्ञान, विचारों की clarity, क्षमा, सत्यता, इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण, सुख और दुख, जन्म-मृत्यु, भय, निडरता, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश और अपयश केवल भगवान् से ही उत्पन्न होते हैं।

भगवान entire सृष्टि का source हैं । सभी वस्तुएँ भगवान् से ही उत्पन्न होती हैं। जो बुद्धिमान यह जान लेता है वह पूर्ण दृढ़ विश्वास और प्रेमभक्ति के साथ भगवान की उपासना करता है। भगवान् के भक्त अपने मन को भगवान् में स्थिर कर अपना जीवन भगवान् में समर्पित करते हुए सदैव संतुष्ट रहते हैं। वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते हुए भगवान् के विषय में वार्तालाप करते हुए और उनकी महिमा का गान करते हुए अत्यंत आनन्द और संतोष की अनुभूति करते हैं।

जिनका मन सदैव भगवान् की प्रेममयी भक्ति में एकीकृत हो जाता है, भगवान् उन्हें दिव्य ज्ञान प्रदान करते हैं जिससे वह भगवान् को पा सकते हैं।

जो यह जानते हैं कि सबका source खुद भगवान हैं, वे unshakeable श्रद्धा के साथ उनकी भक्ति में डूबे रहते हैं। ऐसे भक्त उनकी महिमा की चर्चा कर full mental satisfaction एवं मानसिक शांति प्राप्त करते हैं,और अन्य लोगों को भी जागृत करते हैं क्योंकि उनका मन उनमें एकीकृत हो जाता है। इसलिए भगवान उनके हृदय में बैठकर उन्हें दिव्य ज्ञान प्रदान करते हैं ताकि वे उन्हें सुगमता से प्राप्त कर सकें।

कृष्ण के इन सब self-descriptions को सुन कर अर्जुन मान जाता है कि उसे भगवान की सर्वोच्च स्थिति कि पूरी understanding आ गयी है । फिर वह कृष्ण से request करता है कि वे दोबारा अपना (कृष्ण का) अधिक से अधिक वर्णन करें जिसको सुन ना अमृत पीने के समान है। इसको ऐसा समझिये कि – जब हम कहीं असाधारण आतिशबाज़ी को देखते हैं जो बहुत अच्छी लगती है और हमें ख़ुशी देती है, तब हमें उसे बार बार देखना चाहते हैं । ऐसे ही अर्जुन का भी मन था कि बार बार कृष्ण के self-description को सुने।

कृष्ण ऐसे powerful dynamo के समान हैं जहाँ से मानवजाति के साथ-साथ ब्रह्माण्ड में सभी पदार्थ अपनी ऊर्जा प्राप्त करते हैं। बाकी Chapter में वे उन सभी श्रेष्ठ पदार्थों, व्यक्तित्वों और क्रियाओं का मनमोहक वर्णन करते हैं जो उनके विशाल वैभव को प्रदर्शित करते हैं। वह यह भी clearly कहते हैं कि उनका full-description impossible है । उनकी अनन्त महिमा के महत्व का अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि वे ही अनन्त ब्रह्माण्डों को अपने दिव्य स्वरूप के एक small fraction के रूप में धारण किए हुए हैं।

भगवान् की दिव्य विभूतियों का कोई अन्त नहीं है। कृष्ण ने जो अर्जुन से कहा यह भगवान् की अनन्त महिमा का संकेत मात्र है।

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