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  • Chapter 17: श्रद्धा त्रय विभाग योग

    Date: Dec 22nd, 2024

    (Note: त्रय मतलब – तीन। श्रद्धा त्रय विभाग मतलब – तीन अलग अलग तरह की श्रद्धा।)

    इस chapter में अर्जुन एक बहुत important सवाल पूछते हैं –
    हे कृष्ण! उन लोगों की स्थिति क्या होती है जो धर्मग्रन्थों की आज्ञाओं को follow नहीं करते, पर फिर भी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं? क्या उनकी श्रद्धा, सत्वगुणी, रजोगुणी अथवा तमोगुणी होती है?
    (यानी – ऐसे डॉक्टर्स, engineers, lawyers, politicians, industrialists, व्यापारी, इत्यादि जो घूस लेते हैं, शराब पीते हैं, पर आपको मंदिरों, मस्जिदों, गिरजा घरों में पूरी श्रद्धा से पूजा पाठ करते नज़र आते हैं।)

    कृष्ण ने जवाब में कहा –
    “प्रत्येक प्राणी स्वाभाविक रूप से श्रद्धा के साथ जन्म लेता है जो सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक तीन प्रकार की हो सकती है।
    सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके मन की प्रकृति के अनुरूप होती है। सभी लोगों में श्रद्धा होती है चाहे उनकी प्रकृति कैसी भी हो। प्रकृति वैसी होती है जो वे वास्तव में है।

    जो भी यज्ञकर्म या तप बिना श्रद्धा के किए जाते हैं वे ‘असत्’ कहलाते है। ये इस लोक और परलोक दोनों में व्यर्थ जाते हैं।

    ‘ॐ-तत्-सत्’ शब्दों को सर्वोच्च परम सत्य का symbolic expression माना है।

    सत् शब्द का अर्थ Eternal Reality/ Eternal Truth है। इसका प्रयोग शुभ कर्मों को सम्पन्न करने के लिए किया जाता है। तप, यज्ञ तथा दान जैसे कार्यों को सम्पन्न करने में established (स्थापितन, स्थिर) होने के कारण इसे ‘सत्’ शब्द द्वारा describe किया जाता है। ऐसे किसी भी उद्देश्य के लिए किए जाने वाले कार्य के लिए ‘सत्’ नाम दिया गया है।

    • रजोगुण वाले यक्षों तथा राक्षसों की पूजा करते हैं।
    • तमोगुण वाले भूतों और प्रेतात्माओं (जो कभी पहले देह स्वरुप में थे) की पूजा करते हैं।
    • सत्वगुण वाले स्वर्ग के देवी देवताओं की पूजा करते हैं।”

    यहां कृष्ण कुछ Dietary advice भी देते हैं। कहते हैं –
    लोग अपनी रूचि के अनुसार भोजन पसंद करते हैं इसी प्रकार से उनकी ऐसी रूचि यज्ञ, तपस्या तथा दान के संबंध में भी सत्य है। कुछ लोग अहंकार और दंभ से inspire होकर life-of-balance छोड़ कर कठोर तपस्या करते हैं। कामना और आसक्ति (मुझे James Bond, शाहरुख़ खान का आलिआ भट्ट जैसा दिखना है) से प्रेरित होकर वे न केवल अपने शरीर के अंगों को कष्ट देते हैं बल्कि मुझे, जो उनके शरीर में परमात्मा के रूप में स्थित रहता हूँ, को भी कष्ट पहुँचाते हैं। ऐसे मूर्ख लोगों को पैशाचिक प्रवृति वाला कहा जाता है।

    • सत्वगुण की प्रकृति वाले लोग ऐसा भोजन पसंद करते हैं जिससे आयु, सद्गुणों, शक्ति, स्वास्थ्य, प्रसन्नता तथा संतोष में वृद्धि होती है। ऐसे खाद्य पदार्थ रसीले, सरस, पौष्टिक तथा प्राकृतिक रूप से स्वादिष्ट होते हैं।
    • अत्याधिक कड़वे, खट्टे, नमकीन, गर्म, तीखे, शुष्क तथा मिर्च युक्त spicy व्यंजन रजो गुणी व्यक्तियों को प्रिय लगते हैं ऐसे भोज्य पदार्थों के सेवन से पीड़ा, दुख तथा रोग उत्पन्न होते हैं।
    • अधिक पके हुए, बासी, सड़े हुए, प्रदूषित तथा अशुद्ध प्रकार के भोजन तमोगुणी व्यक्तियों के प्रिय भोजन हैं।

    कृष्ण फिर आगे कहते है –

    • धर्मशास्त्रों की आज्ञाओं के अनुसार इनाम, पुरस्कार, सम्मान, या फल की अपेक्षा किए बिना और मन की दृढ़ता के साथ कर्त्तव्य समझते हुए करी गयी पूजा या यज्ञ सत्वगुणी प्रकृति का है।
    • जो पूजा या यज्ञ भौतिक लाभ अथवा दुनिया को दिखावे के उद्देश्य के साथ किया जाता है उसे रजोगुणी श्रेणी का यज्ञ समझो। यानी ऐसी पूजा करते हुए जो भी माँगा (फल या लाभ या यश) मिलता ज़रूर है, पर ज़रा सोचें – क्या यह ही काफी है?
    • श्रद्धा विहीन होकर तथा imbalanced पूजा या यज्ञ जिसमें भोजन अर्पित न किया गया हो, मंत्रोच्चारण न किए गए हों तथा दान न दिया गया हो, ऐसे पूजा और यज्ञ की प्रकृति तमोगुणी होती है।

    तपस्या क्या है?

    • “परमात्मा, ब्राह्मणों, आध्यात्मिक गुरु, बुद्धिमान तथा श्रेष्ठ सन्तजनों की पूजा यदि पवित्रता, सादगी, ब्रह्मचर्य तथा अहिंसा के पालन के साथ की जाती है तब इसे शरीर की तपस्या कहा जाता है।
    • विचारों की शुद्धता, विनम्रता, मौन, आत्म-नियन्त्रण तथा उद्देश्य की निर्मलता इन सबको मन का तप है।”

    तपस्या कैसी होनी चाहिए?

    • धर्मनिष्ठ व्यक्ति deep श्रद्धा के साथ material benefits की लालसा के बिना तपस्या करते हैं। ऐसी तपस्या best है।
    • जब तपस्या को मान-सम्मान प्राप्त करने और आराधना कराने के लिए दंभपूर्वक सम्पन्न किया जाता है तब यह राजसी कहलाती है। इससे प्राप्त होने वाले लाभ अस्थायी यानी temporary और short-lived होते हैं।
    • वह तप जो confusion और clarity के बगैर विचारों वाले करते हैं तथा जिसमें स्वयं को यातना देना तथा दूसरों का बुरा (अशुभ, अप्रिय, हानिकारक) करना सम्मिलित हो, उसे तमोगुणी कहा जाता है।”

    दान कैसा होना चाहिए?

    • “जो दान बिना फल की कामना से appropriate समय और स्थान में किसी well-deserving को दिया जाता है वह सात्विक दान माना जाता है।
    • अनिच्छापूर्वक (unwillingly) अथवा फल प्राप्त करने की इच्छा के साथ दिए गये दान को रजोगुणी कहा गया है।
    • ऐसा दान जो अपवित्र स्थान तथा अनुचित समय पर undeserving व्यक्तियों को या बिना आदर भाव के अपमान, तिरस्कार, या निंदा के साथ दिया जाता है, उसे तमोगुणी की प्रकृति का दान माना जाता है। इसका फल भी बुरा ही होता है।”